Palghar: मानव विज्ञान अनुसंधान में महिलाओं की भागीदारी अनिवार्य – डॉ. मिलिंद बोकिल

Palghar: दुर्गाबाई भागवत और इरावती कर्वे जैसी विदुषियों के बाद मानविकी (ह्यूमैनिटीज़) के क्षेत्र में ऐसी कोई महिला शोधकर्ता सामने नहीं आई हैं, जो इस विषय में विशेष पहचान बना सकें। इसी संदर्भ में वरिष्ठ लेखिका, आलोचक और समाजशास्त्री डॉ. मिलिंद बोकिल ने कहा कि “अब मानवशास्त्रीय अनुसंधान की अगली धुरी लड़कियों को बनना चाहिए।”

डॉ. बोकिल पालघर के सोनोपंत दांडेकर कॉलेज में मराठी विभाग द्वारा आयोजित पुस्तक विमोचन समारोह को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने भारतीय समाज, जाति व्यवस्था, अंतरजातीय विवाह और बहु-सांस्कृतिक पहचान जैसे विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए।

Palghar: पुस्तक विमोचन समारोह का आयोजन

इस आयोजन में मराठी विभाग की पूर्व प्रमुख डॉ. प्रतिभा कानेकर द्वारा लिखित “इरावती कर्व इन द कोर्टेन ऑफ इंडियन ह्यूमैनिटीज” पुस्तक का विमोचन किया गया। इस अवसर पर मिलिंद बोकिल ने पुस्तक के महत्व पर प्रकाश डालते हुए इसे मराठी साहित्य और समाजशास्त्र के लिए “अमूल्य योगदान” बताया।

उन्होंने कहा कि “जीवनी लेखन केवल किसी व्यक्ति की उपलब्धियों को दर्ज करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक सामूहिक अध्ययन और शोध का परिणाम होता है।” उन्होंने प्रतिभा कानेकर के लेखन और उनकी शोध प्रक्रिया की भी सराहना की।

Palghar: भारतीय समाज और जाति व्यवस्था पर चर्चा

डॉ. बोकिल ने भारतीय समाज की विविधता को उसकी “सबसे बड़ी विशेषता” बताया। उन्होंने कहा कि जाति की अवधारणा केवल भारत में पाई जाती है और यह किसी की श्रेष्ठता या हीनता का निर्धारण नहीं करती।

उन्होंने उपस्थित श्रोताओं से सवाल किया – “हमारा समाज कैसा है? और वह ऐसा क्यों है?”
यह जानने और समझने के लिए शोध आवश्यक है। उन्होंने इस संदर्भ में पारसी समुदाय का उदाहरण दिया, जो अपनी आनुवंशिक संरचना को बनाए रखने के लिए सीमित विवाह प्रणाली अपनाता है।उन्होंने अंतरजातीय विवाह को सशक्त समाज की नींव बताया और कहा कि “समाज को अधिक समावेशी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।

Palghar: इरावती कर्वे के विचारों की प्रासंगिकता

डॉ. बोकिल ने इरावती कर्वे के कार्यों को उद्धृत करते हुए कहा कि उन्होंने भारतीय समाज और संस्कृति के मनोवैज्ञानिक और सामाजिक पहलुओं का गहराई से अध्ययन किया था।उनके अनुसार, इरावती कर्वे ने पारंपरिक समाजशास्त्रीय धारणाओं को चुनौती दी और नए विचार प्रस्तुत किए। इसी प्रकार, आधुनिक शोधकर्ताओं को भी नए दृष्टिकोण विकसित करने होंगे, विशेष रूप से महिलाओं को इस क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहिए।

Palghar: मराठी साहित्य और समाजशास्त्र में योगदान

इस अवसर पर मराठी साहित्य के विद्वानों और समाजशास्त्र से जुड़े लोगों ने पुस्तक के प्रकाशन को मराठी साहित्य के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया।

डॉ. किरण सावे ने डॉ. प्रतिभा कानेकर के योगदान की सराहना करते हुए कहा कि उनका लेखन साहित्य और समाजशास्त्र के बीच की कड़ी को मजबूत करता है।

कार्यक्रम में उपस्थित महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों में शामिल थे –

  • धनेश वर्तक (उपाध्यक्ष)
  • मंगेश पंडित (कोषाध्यक्ष)
  • डॉ. तानाजी पोल (उप प्राचार्य)
  • सुधीर दांडेकर (सांस्कृतिक समिति अध्यक्ष)
  • प्रसाद कुमठेकर (लेखक)
  • गीतेश शिंदे (प्रकाशक)

कार्यक्रम का संचालन डॉ. दर्शना चौधरी ने किया और धन्यवाद ज्ञापन मराठी विभागाध्यक्ष प्रो. विवेक कुडू ने प्रस्तुत किया।

Palghar: भारतीय संस्कृति पर गहन चर्चा का मंच तैयार

डॉ. मिलिंद बोकिल का यह विचार कि “मानवशास्त्रीय अनुसंधान की धुरी अब महिलाओं को बनना चाहिए,” एक महत्वपूर्ण संदेश देता है।आज के समय में, भारतीय समाज के बदलते परिदृश्य को समझने और शोध करने के लिए महिलाओं की भागीदारी आवश्यक है। सामाजिक संरचनाओं, जातिगत समीकरणों और सांस्कृतिक विविधताओं पर गहराई से अध्ययन करने के लिए बुद्धि प्रमाणवादी दृष्टिकोण अपनाना जरूरी है।पुस्तक विमोचन समारोह ने मराठी साहित्य, समाजशास्त्र और भारतीय संस्कृति पर गहन चर्चा का मंच तैयार किया, जिससे भविष्य में और अधिक शोध की प्रेरणा मिलेगी।

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