Maharashtra: सबूतों के अभाव में बेटे की हत्या के आरोप से बरी हुई महिला…

महाराष्ट्र के ठाणे जिले में पांच महीने के मासूम बेटे की हत्या के आरोप में गिरफ्तार की गई 36 वर्षीय महिला को अदालत ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपी महिला के खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सका, जिससे यह साबित हो कि उसने अपने बच्चे की हत्या की थी। इस मामले की सुनवाई ठाणे के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश एस. बी. अग्रवाल की अदालत में हुई, जिन्होंने 20 जनवरी को अपना फैसला सुनाया।

Maharashtra: क्या था पूरा मामला?

24 दिसंबर 2021 को ठाणे के कलवा इलाके के साईबा नगर में महिला के पांच महीने के बेटे का शव एक पानी के ड्रम में मिला था। इस घटना से क्षेत्र में सनसनी फैल गई थी। प्रारंभिक तौर पर महिला ने पुलिस को सूचना दी थी कि उसका बेटा झूले से गायब हो गया है। उसने दावा किया था कि किसी अज्ञात व्यक्ति ने उसके बच्चे का अपहरण कर लिया है। इस दावे के आधार पर पुलिस ने अपहरण का मामला दर्ज कर जांच शुरू की।

Maharashtra: सीसीटीवी फुटेज में क्या सामने आया?

जांच के दौरान पुलिस ने इलाके के कई सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली। फुटेज में दो अज्ञात महिलाएं इलाके में घूमती नजर आईं, लेकिन वे बच्चे को ले जाते हुए नहीं दिखीं। इस बीच, अगले दिन सुबह पुलिस को सूचना मिली कि महिला के पड़ोसी के घर के बाहर रखे पानी के ड्रम में बच्चे का शव मिला है। पुलिस ने तुरंत शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह पुष्टि हुई कि शिशु की मौत पानी में डूबने से हुई थी। इसके बाद पुलिस ने संदेह के आधार पर मां को गिरफ्तार कर हत्या और सबूत मिटाने के आरोप में मामला दर्ज किया।

Maharashtra: अदालत का फैसला

सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष के पास महिला के खिलाफ कोई प्रत्यक्ष या परिस्थितिजन्य साक्ष्य नहीं था, जिससे यह सिद्ध हो सके कि उसने ही अपने बेटे की हत्या की है। अदालत ने यह भी कहा कि केवल संदेह के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इस आधार पर महिला को हत्या और सबूत मिटाने के आरोपों से बरी कर दिया गया।

Maharashtra:कानूनी प्रक्रिया में सबूतों की भूमिका

इस मामले ने एक बार फिर यह दर्शाया कि भारतीय न्याय प्रणाली में सबूतों की अहमियत कितनी अधिक होती है। किसी भी आरोपी को दोषी ठहराने के लिए पुख्ता और स्पष्ट साक्ष्यों की आवश्यकता होती है। ठाणे जिला अदालत का यह फैसला इस सिद्धांत को फिर से स्थापित करता है कि बिना ठोस प्रमाण के किसी भी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

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