Bihar: भागलपुर दंगे का जिक्र कर नीतीश ने मुस्लिमों को साधा, महागठबंधन की बढाई सियासी मुश्किलें

Bihar: बिहार में विधानसभा चुनाव आठ महीने दूर हैं, लेकिन सियासी सरगर्मी अभी से तेज हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में बिहार को विकास और सुशासन की सौगात देते हुए हिंदुत्व का एजेंडा सेट किया। वहीं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भागलपुर दंगे का मुद्दा उठाकर महागठबंधन, विशेष रूप से आरजेडी और कांग्रेस, पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि उनसे पहले की सरकारों ने मुस्लिमों के वोट तो लिए, लेकिन सांप्रदायिक झगड़े रोकने में नाकाम रहे।

Bihar: भागलपुर दंगों का इतिहास और सियासी प्रभाव

1989 में हुए भागलपुर दंगे में लगभग 1000 लोगों की जान गई थी। इस घटना ने बिहार की राजनीति को गहराई से प्रभावित किया। इस दंगे के बाद मुस्लिम समुदाय कांग्रेस से दूर हो गया और जनता दल के करीब आया। जब लालू प्रसाद यादव सत्ता में आए, तो उन्होंने मुस्लिम समुदाय को अपने कोर वोटर के रूप में रखा, लेकिन भागलपुर दंगे के पीड़ितों के लिए ठोस कदम नहीं उठाए। इसके विपरीत, नीतीश कुमार ने सत्ता में आने के बाद इस मुद्दे पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने दंगा पीड़ितों के लिए आयोग बनाया, जांच करवाई, मुआवजा दिया और दोषियों को सजा दिलवाई। यही कारण है कि वे इस मुद्दे को अपनी रैलियों में प्रमुखता से उठाते हैं।

Bihar: नीतीश कुमार की सियासी रणनीति

नीतीश कुमार भागलपुर दंगे का जिक्र करके मुस्लिम समुदाय को यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि वे बीजेपी के साथ रहते हुए भी उनके हितों की रक्षा करने में सक्षम हैं। उन्होंने बताया कि उनकी सरकार ने मृतक आश्रितों को पेंशन दी, पीड़ितों को मुआवजा दिया और न्याय सुनिश्चित किया। इसके विपरीत, लालू-राबड़ी शासन और कांग्रेस ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।

Bihar: आरजेडी-कांग्रेस के लिए बढ़ती मुश्किलें

बिहार में कांग्रेस के शासनकाल के दौरान 1989 में भागलपुर दंगा हुआ था, जिसमें हजारों लोग प्रभावित हुए थे। लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के 15 साल के शासनकाल में इस दंगे को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। इस देरी का कारण यह माना जाता है कि दंगे के आरोपियों में बड़ी संख्या में यादव समुदाय के लोग थे, जो लालू यादव के कोर वोटर थे। ऐसे में नीतीश कुमार ने जब पहली बार मुख्यमंत्री का पद संभाला, तो उन्होंने इस मामले में कार्रवाई की और दोषियों को सजा दिलवाई। इससे वे यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्होंने न्याय की दिशा में जो काम किया, वह आरजेडी और कांग्रेस के शासन में नहीं हुआ।

Bihar: मुस्लिम वोटों का गणित

बिहार में मुस्लिम मतदाता 17% हैं, जो 50 से अधिक विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। पहले ये वोटर कांग्रेस के समर्थक थे, लेकिन बाद में आरजेडी के साथ चले गए। 2005 में नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद मुस्लिमों का एक वर्ग जेडीयू के करीब आया। 2015 में महागठबंधन बनने के बाद मुसलमानों ने जेडीयू का समर्थन किया, लेकिन 2017 में जब नीतीश कुमार ने आरजेडी से नाता तोड़कर बीजेपी के साथ गठबंधन किया, तो मुस्लिम मतदाताओं ने उनसे दूरी बना ली। 2020 के चुनाव में जेडीयू को मुस्लिम वोट नहीं मिला, जिसके चलते पार्टी की सीटें घटकर 43 रह गईं।

Bihar: जेडीयू की रणनीति और चुनौतियां

नीतीश कुमार के बीजेपी के साथ जाने से मुस्लिम समुदाय असहज महसूस कर रहा है। उन्हें इस बात का अंदेशा है कि मुस्लिम मतदाता पूरी तरह से महागठबंधन के पक्ष में जा सकते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने भागलपुर दंगे का मुद्दा उठाया और यह बताने की कोशिश की कि वे बीजेपी के साथ रहते हुए भी मुस्लिमों के हितों की रक्षा कर सकते हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, जेडीयू को यह अहसास हो गया है कि मुस्लिम मतदाता न केवल बीजेपी के उम्मीदवारों को वोट नहीं देंगे, बल्कि जेडीयू और एनडीए के अन्य सहयोगियों से भी दूरी बना सकते हैं। यही कारण है कि नीतीश कुमार मुस्लिम समुदाय का विश्वास जीतने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि उनकी यह रणनीति कितनी सफल होती है और आगामी चुनाव में इसका क्या असर पड़ता है।

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