UP BJP Organization Election: उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी अब अपने संगठन के जरिए समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक यानी पीडीए राजनीति की काट में जुट गई है। नए संगठन में एससी और ओबीसी को अहमियत दे रही है। हाल ही में हुए मंडल अध्यक्ष चुनाव में 60 फीसदी एससी और ओबीसी हैं।
वहीं, इस बार हर जिले में महिलाओं का भी प्रतिनिधित्व दिख रहा है। जिलाध्यक्ष चुनाव की प्रक्रिया को शुरू कराया जा रहा है। इस बीच भाजपा की रणनीति साफ तौर पर सामने आने लगी है।
UP BJP Organization Election: जिलाध्यक्ष की प्रक्रिया हो गई है शुरू
भाजपा संगठन चुनाव अक्टूबर में शुरू हुए थे। कुल 1.62 लाख बूथ कमिटियों का चुनाव हो चुका है। वहीं, 1918 मंडल अध्यक्षों का चुनाव भी हो गया है। अब जिलाध्यक्ष की प्रक्रिया शुरू हो गई है। अगले महीने तक प्रदेश कार्यकारिणी का चुनाव होने की उम्मीद है। इस बार चुनाव के शुरुआत में ही महिलाओं और दलितों को खास तवज्जो देने के निर्देश दिए गए थे।
मंडल अध्यक्ष के लिए आयु सीमा 35 से 35 वर्ष तय की गई थी। जिलाध्यक्ष के लिए 45 से 60 वर्ष की आयु सीमा तय की गई थी। महिलाओं और दलितों को अहमियत देते हुए इनको आयु सीमा में छूट के निर्देश भी दिए गए थे, ताकि इनका अधिक से अधिक प्रतिनिधित्व हो सके।
UP BJP Organization Election: कितने मंडलों पर हो चुके हैं चुनाव ?
अभी तक 1918 मंडलों में चुनाव हो चुके हैं। इनमें प्रदेश स्तर से दिए गए निर्देशों का असर दिख रहा है। हर जिले में करीब 60 फीसदी मंडल अध्यक्ष एससी और ओबीसी हैं। महिलाओं को भी तवज्जो दी गई है लेकिन अब भी उनकी संख्या काफी कम है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि पदाधिकारी बनाने के लिए दो बार का सक्रिय कार्यकर्ता होना भी जरूरी है।
इस वजह से महिलाओं की संख्या बहुत ज्यादा नहीं है लेकिन पहले जहां मंडल स्तर पर महिलाएं होती ही नहीं थीं, इस बार कई महिला पदाधिकारी बनी हैं। हर जिले में दो-तीन महिला मंडल अध्यक्ष बनाई गई हैं। लखनऊ में एक मंडल अध्यक्ष महिला है।
UP BJP Organization Election: क्या है पार्टी की रणनीति?
राजनीति में एससी और ओबीसी की अहमियत को सभी पार्टियां समझ रही हैं। अभी तक हिंदुत्व के नाम पर एससी और ओबीसी भाजपा से जुड़े। यही वजह है कि 2014 से भाजपा लगातार चुनाव जीत रही है। लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष ने PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) कार्ड खेला। संविधान और PDA के मुद्दे पर चुनाव लड़ा और उसमें भाजपा को काफी नुकसान हुआ।
यही वजह है कि भाजपा PDA का जवाब देने के लिए दलितों और पिछड़ों को इतनी तवज्जो दे रही है। जब संगठन में इतने पदाधिकारी दलित और ओबीसी होंगे तो उनके जरिए वोटरों को जोड़ना आसान होगा। वहीं, पिछले चुनावों में महिला वोटरों की सक्रियता भी बढ़ी है। इसे देखते हुए महिला पदाधिकारी बनाने की भी कवायद की जा रही है।