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महाराष्ट्र निकाय चुनाव: मतदान के बाद मतगणना रद्द — हाईकोर्ट के आदेश से चुनाव आयोग की व्यवस्था पर सवाल

On: Wednesday, December 3, 2025 1:30 PM
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हिंद आवाज मीडिया – विशेष विश्लेषण रिपोर्ट

🕘 मतदान सम्पन्न, पर मतगणना पर लगी रोक

महाराष्ट्र में नगर परिषद और नगर पंचायतों के चुनावों का पहला चरण 2 दिसंबर 2025 को संपन्न हुआ। राज्य के 264 निकायों में लगभग 47.5 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान किया। ग्रामीण और अर्धशहरी क्षेत्रों में अपेक्षित उत्साह के साथ लोग वोट डालने पहुँचे, लेकिन अगले ही दिन — यानी 3 दिसंबर को — जिस मतगणना की प्रतीक्षा उम्मीदवारों और मतदाताओं को थी, वह अचानक रद्द कर दी गई।

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने मतगणना पर तत्काल रोक लगाते हुए कहा कि मतगणना 20 दिसंबर के बाद ही की जाएगी। अब नई तिथि 21 दिसंबर 2025 तय की गई है। इस निर्णय से चुनावी प्रक्रिया पर एक नया मोड़ आ गया है।

⚖️ हाईकोर्ट ने क्यों लगाई रोक?

हाईकोर्ट के अनुसार, राज्य में कुछ नगर परिषदों और पंचायतों में नामांकन पत्रों और प्रतीक आवंटन (symbol allotment) की प्रक्रिया में अनियमितताएँ हुई थीं। इन मुद्दों पर दायर याचिकाएँ अभी विचाराधीन हैं।

यदि मतगणना 3 दिसंबर को कराई जाती, तो जिन क्षेत्रों का मतदान आगे (20 दिसंबर) होना है, वहाँ मतदाताओं के विचार प्रभावित हो सकते थे। अदालत ने इसे चुनावी समानता और निष्पक्षता के खिलाफ माना।

इसलिए, न्यायालय ने आदेश दिया कि —

“जब तक सभी क्षेत्रों में मतदान पूर्ण नहीं हो जाता, तब तक किसी भी निकाय का परिणाम घोषित नहीं किया जाएगा।”

अब आगे क्या होगा?

20 दिसंबर 2025: उन नगर परिषदों और पंचायतों में मतदान कराया जाएगा जहाँ चुनाव प्रक्रिया लंबित है।

21 दिसंबर 2025: राज्यभर में एक साथ मतगणना और परिणामों की घोषणा की जाएगी।

तब तक चुनाव आयोग और प्रशासन को सभी EVMs को सुरक्षित रखने और स्ट्रॉन्ग रूम की चौकसी बढ़ाने के निर्देश दिए गए हैं।

🔍 राजनीतिक हलकों में मचा हंगामा

मतगणना स्थगित होने पर विपक्षी दलों ने महाराष्ट्र राज्य निर्वाचन आयोग (SEC) की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इसे “प्रशासनिक असफलता और प्रक्रिया की लापरवाही” बताया है।
वहीं, कांग्रेस और राकांपा (शरद पवार गुट) के नेताओं ने कहा कि आयोग ने कानूनी तैयारी पूरी किए बिना मतदान की घोषणा की थी, जिससे यह स्थिति बनी।

शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) ने भी इस कदम को “जनमत की उपेक्षा” बताया और कहा कि मतदाता अब संशय में हैं कि उनके वोट की गिनती कब होगी।

पुलिस और प्रशासन की भूमिका

मतदान के दौरान राज्य के कई हिस्सों में शांति रही, लेकिन कुछ क्षेत्रों में हल्के झगड़े और हिंसा की घटनाएँ दर्ज की गईं — विशेष रूप से पालघर, नाशिक और अकोला जिलों में।
मतगणना स्थगन के बाद पुलिस ने EVM स्ट्रॉन्ग रूम की सुरक्षा और कड़ी कर दी है।

सभी स्ट्रॉन्ग रूम्स की तीन-स्तरीय निगरानी

CCTV और वीडियो रिकॉर्डिंग व्यवस्था

SRPF और QRT की चौबीसों घंटे तैनाती

सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने वालों पर कड़ी नजर

इन उपायों से मतगणना तक शांति और पारदर्शिता बनाए रखने की कोशिश की जा रही है।

जनता की प्रतिक्रिया — उत्साह के बीच भ्रम

मतगणना टलने से मतदाताओं में भ्रम की स्थिति बनी है। कई जगह लोगों का कहना है कि “हमने समय पर वोट दिया, अब नतीजों के लिए तीन हफ्ते क्यों इंतजार करें?”
ग्रामीण इलाकों में मतगणना स्थगित होने की खबर से उम्मीदवारों में भी बेचैनी बढ़ी है। प्रचार खर्च और संगठनात्मक प्रबंधन पर इसका असर दिख रहा है।

  • विश्लेषण: प्रशासनिक लापरवाही या न्यायिक सावधानी?

यदि विश्लेषणात्मक दृष्टि से देखें, तो इस स्थगन को दो भागों में समझना होगा:

  1. प्रशासनिक दृष्टिकोण से, यह राज्य निर्वाचन आयोग की तैयारी में कमी दर्शाता है। चुनाव तिथि घोषित करने से पहले सभी प्रक्रियात्मक और कानूनी कार्यवाही पूर्ण होनी चाहिए थी।
  2. न्यायिक दृष्टिकोण से, यह फैसला आवश्यक था ताकि किसी भी क्षेत्र के मतदाताओं के साथ अन्याय न हो और पूरे राज्य में परिणाम एक साथ आएँ — जिससे निष्पक्षता बनी रहे।

इसलिए यह कहा जा सकता है कि अदालत का कदम लोकतंत्र की गरिमा बनाए रखने के लिए संवैधानिक सावधानी के तहत लिया गया है, जबकि आयोग को भविष्य में ऐसी गलती दोहराने से बचना होगा।

पालघर जिला विशेष संदर्भ में

पालघर, डहाणू और वसई-विरार क्षेत्र में मतदान शांतिपूर्ण रहा। हालांकि, कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में मतदान सामग्री पहुँचाने में देर हुई। अब मतगणना टलने से यहाँ के प्रत्याशी भी असमंजस में हैं।
स्थानीय पुलिस ने सभी मतदान केंद्रों और स्ट्रॉन्ग रूम स्थलों पर निगरानी कड़ी कर दी है।

निष्कर्ष

महाराष्ट्र निकाय चुनाव का यह अध्याय लोकतंत्र के संचालन में पारदर्शिता और तैयारी दोनों की परीक्षा है।
मतगणना टलने से जहां प्रशासनिक कमी उजागर हुई है, वहीं न्यायालय ने यह सुनिश्चित किया है कि किसी भी मतदाता के साथ असमानता न हो।
अब पूरा राज्य 21 दिसंबर की प्रतीक्षा में है — जब यह साफ होगा कि स्थानीय निकायों की सत्ता पर जनता का फैसला किस ओर जाएगा।

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